नन्द किशोर जी के कलम से
भारत के राजस्थान प्रांत में एक शहर झुंझुनू जो जिला भी है, शेखावटी क्षेत्र में आता है वहां के बाशिंदों ने वहां से व्यापार एवं अन्य कारणों से भारत के भिन्न-भिन्न मार्ग प्रांतों में मुख्यतः बिहार कोलकाता एवं मुंबई जा बसे। वैसे ही परिवारों में जगनानी परिवार का एक सदस्य, वृक्ष की एक डाली की मूल रूप से चर्चा कर रहा हूं
जगनानी परिवार का एक वृक्ष जिसके मूल बेड़ा स्वर्गीय मोतीलाल जी थे उनकी पत्नी का नाम मोहरी देवी था उनके दो पुत्र स्वर्गीय श्री रामरिख दास जी एवं स्वर्गीय श्री मंगल चंद जी थे। दोनों की पत्नियों का नाम क्रमशः सुरजी देवी एवं सरस्वती देवी था। श्री मंगल चंद जी को कोई संतान नहीं थी अतः सांवलराम जी उनके गोद गए गए एवम श्री रामरिख जी के संतानों का ब्यौरा इस प्रकार है
पुत्र स्व.बिहारी लाल जी, चिरंजीलाल जी, कुंजीलाल जी, लीलाधर जी एवं पुत्री लक्ष्मीबाई एवं झिमी बाई हुई। चिरंजीलाल जी की असमय मृत्यु हो गई थी। लक्ष्मीबाई का विवाह गाड़ियां परिवार झुंझुनू में हुआ उनके तीन संताने थी बाबूलाल, मनोहर लाल एवं मणि बाई।
झिमी बाई का विवाह राजस्थान के मलसीसर में केडिया परिवार में हुआ जो बहुत कम उम्र में विधवा हो गई कालांतर में यह परिवार गुजरात के अहमदाबाद में आ बसा। झिमी बाई ने अपने देवर नंद
लाल नंदलाल जी को गोद ले लिया जिनसे बासुदेव कन्हैया मुरारी लड़के एवं शारदा बाई हुई।
सन 1920 के आसपास श्री मंगल चंद जी एवं श्री रामरिख जी जयपुर राजा की फौज की नौकरी छोड़कर बिहार के महाराजगंज जिला छपरा सारण बाद में सीवान जा बसे। सांवलराम जी राम ने बिहार के हरसिद्धि, बरौली एवं छपरा में नौकरी की और कालांतर में 1945 में नमक का व्यवसाय शुरू किया। बिहारी लाल जी ने भी छपरा में नौकरी की। बिहारीलाल जी कुंजीलाल जी एवं लीलाधर जी ने महाराजगंज में सूत एवं किरासन तेल का व्यापार किया। फिर वही एक आलीशान बिहारी भवन बनाया एवं बगीचा गोदाम जमीन दुकान आदि बनवाएं। सांवलराम जी ने नमक का व्यापार गुजरात के जामनगर में 1952 में शुरू किया। सांवलराम जी की पत्नी बनारसी देवी थी और विवाह टेकरीवाल परिवार में यूपी प्रांत के बहराइच जिले के नानपारा शहर में हुआ जो कालांतर में बहराइच भी बसें। बिहारीलाल जी पत्नी पार्वती देवी का विवाह बिहार के मुजफ्फरपुर में हुआ। कुंजीलाल जी का विवाह यूपी के लखनऊ शहर में हुआ। लीलाधर जी पत्नी गीनिया देवी का विवाह यूपी के गोरखपुर के पास फरेंदा में हुआ।
सांवलराम जी की एक ही लड़की सीताबाई का विवाह माधोगढ़ीया परिवार में बिहार के बेतिया शहर में छपरा से सन 1940 में हुआ। बड़े पुत्र काशीनाथ पत्नी गिनिया देवी का विवाह यूपी के मटेरा शहर में हुआ। द्वितीय पुत्र जुगल किशोर का विवाह पत्नी भगवती देवी, रूंगटा परिवार में बिहार के बेगूसराय में 1948 में हुआ। यह आरएसएस के स्वयंसेवक होने के चलते 1948 में गांधी जी की हत्या के सिलसिले में जेल भी गए थे। तीसरे पुत्र धर्मनाथ जगनानी पत्नी फूलवती देवी का विवाह कटिहार के भोपालका परिवार में 1957 में हुआ। चतुर्थ पुत्र नंदकिशोर पत्नी शारदा देवी का विवाह बिहार के बेगूसराय में रूंगटा परिवार में सन 1959 में हुआ।
कांशीराम जी के बड़े पुत्र सुशील कुमार पत्नी बिंदु का विवाह 1973 में बेगूसराय कालांतर में राजस्थान बांदीकुई में हुआ। पहले छपरा में नमक का व्यवसाय और बाद में गुजरात के सूरत में कपड़ा का व्यवसाय कर रहे हैं। द्वितीय पुत्र विमल कुमार पत्नी प्रमिला देवी का विवाह 1974 में पटना मित्तल परिवार में हुआ। पहले छपरा में कपड़ा व्यवसाय, फिर बहराइच में बिजली सामान की दुकान, फिर गुजरात के सूरत में कपड़ा व्यवसाय कर रहे हैं । जुगल किशोर के बड़े पुत्र अशोक कुमार का विवाह 1974 में पत्नी पद्मा लाड परिवार छपरा कालांतर में वर्तमान पाली राजस्थान में हुआ। व्यवसाय जामनगर में नमक का दूसरे पुत्र सुरेश कुमार के विवाह 1984 में पत्नी वीना देवी से जबलपुर में सेकसरिया परिवार में हुआ। इन्होंने नमक का व्यवसाय जामनगर गुजरात में और बाद में पीतल पार्ट्स निर्माण का भी कार्य किया।
धर्मनाथ प्रसाद के बड़े पुत्र सुनील कुमार पत्नी रेखा का विवाह 1984 में बेतिया में हुआ। छपरा में फिर पटना में कपड़े का व्यवसाय कर रहे हैं। द्वितीय पुत्र सुधीर कुमार का विवाह पत्नी लीना से कानपुर में हुआ पहले छपरा में व्यवसाय फिर कानपुर में कपड़ा व्यवसाय और अभी सूरत में काम कर रहे हैं। नंदकिशोर के दत्तक पुत्र रमेश कुमार का विवाह 1983 में पत्नी मीरा राजगढ़िया परिवार रांची में हुआ। व्यवसाय पहले पटना मैं बिस्कुट एवं ब्रेड फैक्ट्री बाद में अहमदाबाद में ब्रेड फैक्ट्री एवं आटा फैक्ट्री फैक्ट्री एवं आटा फैक्ट्री का काम शुरू किया नंदकिशोर ने 1962 में इलेक्ट्रिकल इंजीनियर बनकर बिहार स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में 36 वर्षों तक अपनी सेवा दी और 1998 में विद्युत सुपरिटेंडेंट इंजीनियर पद से रिटायर होकर पेंशन प्राप्त कर अहमदाबाद में निवास कर रहे हैं।
बिहारी लाल जी के दत्तक पुत्र श्याम सुंदर पत्नी पुष्पा देवी महाराजगंज में व्यवसाय किए और बाद में गोरखपुर डिस्ट्रीब्यूशन का काम कर रहे हैं बड़ा पुत्र अमित गोरखपुर व्यवसाय में है दूसरा पुत्र सुमित सूरत में अपना काम कर रहे हैं। कुंजलाल जी के बड़े पुत्र श्यामलाल पत्नी मीरा का विवाह राम नगर में हुआ पहले व्यवसाय महाराजगंज में और बाद में सूरत में। दूसरे पुत्र श्याम शरण पत्नी चंदा देवी का विवाह मोतीपुर बिहार में हुआ पहले मऊ के स्वदेशी कॉटन मिल में नौकरी और बाद में सूरत में व्यवसाय कर रहे हैं। लीलाधर जी के बड़े पुत्र मोहन लाल का विवाह भोपालका परिवार कटिहार में हुआ हुआ इनकी असमय मृत्यु हो गई इनके दो पुत्र मनोज एवं मुकेश एवं दो पुत्रियां हैं। इनका छपरा में दवा एवं कोटा राजस्थान में लकड़ी का व्यवसाय है। दूसरे पुत्र राधेश्याम पत्नी पुष्पा का विवाह बिहार के बकरी में हुआ। इनको एक पुत्र एवं चार पुत्रियां हैं। छपरा में कपड़ों का व्यवसाय है। तीसरे पुत्र संतोष कुमार पत्नी मंजू का विवाह गोरखपुर में हुआ। महाराजगंज में व्यवसाय फिर गोरखपुर में व्यवसाय और असमय मृत्यु हो जाने के बाद पुत्र मनीष सूरत में व्यवसाय कर रहा है। चतुर्थ पुत्र प्रमोद कुमार पत्नी शमा का विवाह बेतिया में हुआ। व्यवसाय पहले कपड़ों का छपरा में बाद में सूरत में और वर्तमान में लड़की की जॉब पुणे में होने की वजह से वहां ही निवास कर रहे है।
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श्याम सुंदर जी के कलम से

अपना जगनानी परिवार जिसका गोत्र मंगल है, राजस्थान के झुंझुनू जिले के मुख्यालय झुंझुनू में जगनानीयों के मोहल्ले के रहने वाले हैं। आज भी झुंझुनू में अपना निजी मकान एवं दुकान है, जो पाटीदारों के जिम्मे है। अपने वहां से काफी पहले लगभग सन् 1924 मैं बिहार प्रांत आ गए थे, जिसका वर्णन बड़े भैया ने अपने पत्र में भी किया है।
अपने जगनानी परिवार के कुल देवता बाबा श्याम खाटू वाले हैं और अपने सभी व्यावसायिक कार्य उनके नाम से ही करने का प्रयास किया जाता है। यथा श्याम साड़ी भंडार, श्याम वस्त्रालय, श्याम ऑयल डिपो, श्री श्याम मेडिको, खाटू श्याम डिस्ट्रीब्यूटर, खाटू श्याम सेल्स, खाटूपति ट्रेडर्स आदि। इन्हीं के साथ परिवार ने अपने बच्चों का नाम भी यथासंभव बाबा श्याम के नाम संबंधित रखने का प्रयास किया है जैसे श्याम सुंदर, श्याम लाल, श्याम शरण, राधेश्याम आदि। अपने जात-जडूले वाले सभी कार्य खाटू बाबा श्याम जी के मंदिर परिसर में ही सम्पन्न होते हैं। खाटू में आज भी अपने परिवार के दो मकान है जो कि एक पुराने कुंड एवं एक नए कुंड के नजदीक है। जहां बड़े भैया नंदकिशोर जी एवं भतीजे मनोज जगनानी द्वारा पूरे भारत से आए हुए परिवार जनों की रहने की व्यवस्था और भंडारे का आयोजन प्रति वर्ष मार्च के लक्खी मेले में किया जाता है।
इसी संदर्भ में कुछ चर्चा नहीं हो सकी उसे भी बताना आवश्यक है श्री बिहारी लाल जी की दो शादियां हुई थी पहली शादी नानपारा हुई और पत्नी का नाम चमेली देवी था। उनकी असमय मृत्यु के पश्चात दूसरी शादी मुजफ्फरपुर के जलान परिवार में हुआ जिनका नाम पार्वती देवी था। विवाह के पश्चात 40 वर्ष की उम्र तक कोई संतान नहीं होने से छोटे भाई लीलाधर जी के द्वितीय पुत्र को दादीजी ने गोद दे दिया था। उस समय उस बच्चे का नाम कृष्ण कुमार था, परंतु तबीयत खराब रहने पर उस लड़के का नाम बाबा श्याम के साथ जोड़कर श्यामसुंदर रखा गया, तब जाकर वह लड़का स्वस्थ हुआ।
इस संदर्भ में यह भी बताना चाहता हूं कि महाराजगंज का मकान सन 1940 से बनना शुरू होकर सन 1945 के 26 जनवरी को बाबा श्याम के भव्य कीर्तन के पश्चात गृह प्रवेश हुआ था। तत्कालीन वर्मा शेल तेल की कंपनी का डिस्ट्रीब्यूशन होने की वजह से उसकी देखरेख के लिए अंग्रेज महाराजगंज आया करते थे अतः इस मकान के नक्शे में अंग्रेजों का भी योगदान रहा है। उस वक्त बिहारी लाल जी को DBBL गन का लाइसेंस बाबू बिहारी लाल जी के सम्मानजनक नाम एवम कार्य से दिया गया था।
इसी संदर्भ में या भी उल्लेखनीय है कि लीलाधर जी ने अंग्रेजों के खिलाफ सन 1947 के स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भाग लिया था एवं स्थानीय थाना स्टेशन आदि को जलाने में सक्रिय रहे थे, जिसके कारण कई वर्ष उन्हें महाराजगंज छोड़कर बाहर रहना पड़ा एवं काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात जब भारत सरकार ने स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मानित किया तो लीला मारवाड़ी के नाम पर इन्हें ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया गया एवं राजकीय पेंशन भी मिला। उनकी मृत्यु के पश्चात उनकी धर्मपत्नी गिनिया देवी को भी जीवन पर्यंत पेंशन मिलता रहा।
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मीरा श्याम जगनानी के कलम से
मैं मीरा जगनानी स्वर्गीय श्यामलाल जगनानी जी की पत्नी 26 नवंबर 1973 को ब्याह कर बिहारी भवन में आई थी। बिहारी भवन जो बिहार के सीवान जिले के महाराजगंज में एक शानदार कोठी रही, जिसका नाम उस पीढ़ी के बड़े भाई स्वर्गीय बिहारी लाल जी के नाम पर रखा गया था। बिहारी लाल जी जगनानी में अद्भुत वाकपटुता थी। अपनी लच्छेदार बातों से किसी को भी प्रभावित कर लेते थे। स्वर्गीय कुंजीलाल जी सहृदयी, समाजसेवी और कुशल व्यापारी थे। वे समाज के छोटे से छोटे व्यक्ति तक पहुंचते थे और शहर में आने वाले बड़े से बड़े व्यापारी तक उनकी पहुंच थी। परिवार के सभी बेटे बेटियों एवम बहूओं को सम-भाव से लाड करते थे। ये मेरा दुर्भाग्य रहा कि मैं उनके स्नेह से वंचित रह गई। स्वर्गीय लीलाधर जगनानी संघर्षशील व्यक्तित्व, जो एक स्वतंत्रता सेनानी भी रहे और आजादी के बाद भारत सरकार द्वारा सम्मानित भी किये गए थे।
स्व. सांवलराम जी के प्रथम पुत्र स्व. काशीनाथ जी मातृ-पितृ भक्त तथा त्यागी थे। इनके द्वितीय पुत्र स्व. जुगल किशोर जी बिहार से सर्वप्रथम गुजरात के जामनगर में बसे थे। उनका नमक का व्यापार था। उनके तृतीय पुत्र स्व. धर्मनाथ जी जगनानी को मैं एक मार्गदर्शक के रूप में देखती हूं एक बार कुछ विशेष कार्य से 8-10 दिन महाराजगंज में रहना हुआ। समस्या खड़ी होने पर उन्होंने मुझसे कहा था कि यदि बहुत कुछ देने पर भी शांति मिलती है तो यह सौदा अवश्य करना चाहिए। यह बात आज तक मेरा मार्गदर्शन करती है। उनके चतुर्थ पुत्र श्री नंदकिशोर जी जगनानी एकता तथा पारिवारिक रिश्तो को निभाने में अग्रगण्य रहे।
स्व. बिहारी लाल जी की एकमात्र दत्तक पुत्र श्री श्यामसुंदर जी जगनानी थे। इनका महाराजगंज में अपना ही रुतबा रहा। उनके रहते किसी साधारण व्यक्ति को बिहारी भवन के चबूतरे पर चढ़ने के लिए कम से कम 2 बार सोचना पड़ता था। स्वर्गीय कुंजीलाल जी के प्रथम पुत्र स्व. श्यामलाल जी जगनानी सहनशील आत्मसंयमी और साधारण सा प्रतीत होने वाला व्यक्तित्व मातृ भक्त था। इन्होंने बहुत सारी विषम परिस्थितियां झेली, परंतु अपनी बुद्धि चातुर्य से अपने बालकों को ही नही बल्कि अपनी पत्नी को भी एक योग्य नारी बना दिया। मैं मीरा जगनानी, उनकी पत्नी, सदा उन पर गर्व करती रहूंगी। उनका प्रथम पुत्र शरद जगनानी और दूसरा शिशिर जगनानी दोनों ही गुजरात के सूरत में है और कपड़े के व्यापार को कर रहे हैं। स्व. कुंजीलाल जी के द्वितीय पुत्र श्री श्याम शरण जी बड़े ही निश्चल और शांत प्रवृत्ति के हैं।
यह सरस, सहृदय और मृदुभाषी भी हैं। इन्होंने कभी अपनी मां और बड़े भाई की अवहेलना नहीं की। इनके प्रथम पुत्र आदर्श जगनानी और द्वितीय पुत्र आकाश जगनानी सूरत में ही मशीनरी पार्ट्स का व्यापार करते हैं तथा तृतीय पुत्र आशीष जगनानी सूरत में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है।
स्वर्गीय लीलाधर जी जगनानी के प्रथम पुत्र रहे स्वर्गीय मोहनलाल जी जगनानी अपनी सहज और ज्ञान पूर्ण वाणी से सही दिशा दिखा जाना उनका व्यक्तित्व था। मुझे याद है, एक बार उन्होंने मां कर्पूरी देवी से अनायास ही पूछा था कि तुम्हारी पुत्र वधू कैसी है? माँ ने कहा कि अच्छी तो है परंतु तुम्हारी पत्नी कौशल्या जैसी नहीं। उस समय में भाई साहब के जवाब से गदगद हो गई जब खंबे के पीछे से मैंने सुना कि वह मां से कह रहे थे कि जैसे आपको कौशल्या पसंद है वैसे ही माँ (गिनिया देवी) को मीरा, परंतु है तो दोनों ही अच्छी। उनके बड़े पुत्र हैं मनोज कुमार जी जिन्होंने पूरे परिवार को परिवार के सभी सदस्यों से परिचय कराने का बड़ा ही सराहनीय कार्य किया है। स्व. लीलाधर जी के दूसरे पुत्र सरलता से ओत-प्रोत श्री राधेश्याम जी हैं। हास्य रस के धनी तीसरे पुत्र स्वर्गीय संतोष कुमार जी हैं। श्री प्रमोद कुमार जगनानी सब भाइयों में छोटे इनके चौथे पुत्र हैं।
स्व. सांवलराम जी की एकमात्र पुत्री स्वर्गीय सीतादेवी थी, जो मातृवत स्नेह रखती थी। स्व. कुंजीलाल जी की प्रथम पुत्री श्रीमती कमला देवी का विवाह रक्सौल बिहार के मस्करा परिवार में हुआ। वह सूरत में अपने पुत्र अशोक मस्करा के साथ रहती हैं। उनका मार्गदर्शन हमेशा मिलता रहता है। दूसरी पुत्री श्रीमती विमला देवी का विवाह कटिहार के खेतान परिवार में हुआ और उनके चार पुत्र और 3 पुत्रियां हैं। तीसरे पुत्र स्व. निर्मला देवी थी, जिनका विवाह उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में हुआ था।
स्व. लीलाधर जी की प्रथम पुत्री स्व. शांति देवी थी। उनके हृदय में प्रेम का प्याला सबके लिए सदा भरा रहा। मृदुभाषी और स्नेह इस स्वभाव वाली श्रीमती शीला देवी इनकी दूसरी पुत्री हैं, जिनका विवाह पटना में हुआ आजकल वह सब परिवार दिल्ली में है। भाई-भाजीजों में विशेष प्रेम रखने वाली स्व. प्रेमा पालीवाल इनकी तीसरी पुत्री का विवाह बिहार के पूसा रोड के पालीवाल परिवार में हुआ। बाद में सूरत आकर रहने लगे और अपने उदार स्वभाव के कारण जगनानी परिवार के कई लोगों को यहां बसाया। इनकी पुत्री श्रीमती सरिता देवी का विवाह मुंगेर के खेमका परिवार में हुआ जो अपने हास्य व्यंग से सब को लुभाती हैं।
जिनसे मेरा अत्यधिक सानिध्य रहा, परिवार की उन महान आत्माओं के विषय में अवश्य लिखना चाहूंगी। चाची जी (स्व. गिनिया देवी) जाने के एक दिन पहले मुझे लगभग 3 घंटे से अपने पास बिठाकर अपने जीवन के एक एक पन्ने खोल कर रख दिए। बाद में जब मैंने अपने पति श्यामलाल जी को यह कहा कि मुझे क्यों नहीं पता चला कि कल वह जाने वाली है तो उन्होंने कहा था कि मैं भी काशी भैया के साथ था तब प्रतिदिन शाम को अपने जीवन का एक एक महत्वपूर्ण पन्ना खोलते थे।तब मुझे भी कहां पता था कि वह दुनिया छोड़ने वाले हैं। यह वह महान आत्माएं थी जिन्होंने अपने जीवन के कागज पर जो कुछ लिखा , यहीं सादा करके, जैसे आए थे वैसे चले गए। स्व. श्यामलाल जगनानी जिन्होंने कभी किसी चीज को लालसा से नहीं देखा। उनको जीवन के अंत तक जीवन-मृत्यु की लालसा नही रही। बिल्कुल निर्लप्त, हमेशा खुश।
जगनानी परिवार के सभी पुत्रवधूवों ने भी अपनी अपनी विशेष योग्यता के साथ परिवार को आगे बढ़ाने का काम किया है। जगनानी परिवार की अगली पीढ़ी और भी प्रतिभाशाली है, इनकी प्रतिभा अपने-अपने क्षेत्र में और भी उज्ज्वल हो यही कामना है। ईश्वर इस परिवार की वंश वृद्धि करता रहे। वंश-वृद्धि पूर्वजों के आशीर्वाद और देवी-देवताओं की कृपा से होती है। हम सभी जानते हैं कि हमारी कुल देवी दीना-मीना सती है, परंतु उनका इतिहास हमें नहीं पता। मेरा मानना है कि सर्वप्रथम हमें उनके इतिहास की खोज करानी चाहिए जैसे उनका जन्म, उनका विवाह कहां और किससे और कैसे हुआ? सती कब और कहां हुई आदि? आज के युवाओं के लिए आसान होगा क्योंकि गूगल ऐप आदि चलाना और खोजना आसान है।
जय श्री श्याम.... जय दादी की....
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शारदा जगनानी के कलम से
मैं शारदा जगनानी पत्नी श्री नंदकिशोर जगनानी अपने 75 वर्षों के सामाजिक एवं संस्कारी व्यवस्थाओं के आधार पर जीवन शैली एवं उत्तरदायित्व का जिक्र करना चाहती हूं।
(1). परिवार में लड़का या लड़की का जन्म होने पर-
जन्म लेने के तुरंत बाद थाल बजाते हैं। पिता / दादा द्वारा बच्चों को घुट्टी पिलाई जाती है, यानी बच्चे की जीभ पर सबसे पहले शहद से ॐ लिखने की कोशिश करते है या चटाते हैं। गट कूटकर चीनी मिलाकर सात जगह छूता पितरों के नाम का निकालकर प्रसूति महिला को उसी दिन खिलाते हैं। जन्म के 6-10-15 दिन पर जच्चा-बच्चा को नहला कर पांइची पुजवाते हैं। जन्म कमरे के दरवाजे की चौखट पर दोनों को बैठा कर, दिया जलाकर, मूंग-चावल से पूजा किया जाता है। पंडित द्वारा निश्चित शुभ दिन को को जलवा की विधि होती है। जच्चा-बच्चा को नीम के पानी से नहला कर नया कपड़ा पहना कर दरवाजे पर ननद द्वारा मांडे गए सथिया का पूजन करती है। बच्चे के पिता द्वारा बहन को ओढ़ना, रुपया, बेला (आधा गट) आदि दिया जाता है। कमरे में घड़े पर दो साड़ी, दो ब्लाउज रुपया आदि रखकर पूजा करके, बाहर कुँए पर पूजा करने जाती है। उनके लौटने तक बच्चे को पिता अथवा दादा की गोद में कमरे में हीं रखते हैं।
नोट : जलवा पूजा प्रक्रिया :-
सबसे पहले जच्चा को सभी शुभ कार्यों को शुरू करने से पहले मेहंदी लगाई जाती है।
* जलवा पूजने के पहले पितर देवताओं को, कुल देवता को, स्वर्गीय बड़े बुजुर्गों के नाम से 4-4 कपड़ा निकलता है, जिसमें एक-एक धोती-कुर्ता-गमछा-गंजी तीन जगह और एक साड़ी-बलाउज एक जगह। साथ ही सभी को देवताओं के आगे रखकर चढ़ावे का रुपया चढ़ाकर हाथ जोड़ने के उपरांत, जच्चा-बच्चा को पहली बार नया कपड़ा पहनाते हैं।
* छठी पूजा होता है इसमें देवी देवता के नाम से आखां घलाई जाती है अर्थात दिया जला कर उसपर मूंग-चावल छोड़कर हाथ जोड़ा जाता है। चौका / रसोईघर में मूंग की दाल और चावल बनाकर उसमें घी-चीनी और रुपया रखकर बाना निकालते है। जच्चा द्वारा ये बाना सास (बच्चे की दादी) को देकर धोक खाया जाता है।
* चावल भात की 4 एवम गाय के गोबर से बने गोयठे की राख से भी 4 पिंडी बनाकर पाटे पर रखकर इनकी पूजा की जाती है, फिर इन पिंडियों को पूजा की थाली में रखकर नौकर/दाई द्वारा छत के चारों कोनों पर रखा जाता है।
* तना बंधाई : देवर, जेठ का लड़का अथवा भांजा द्वारा हॉल में मूँज की रस्सी से तना बंधाई किया जाता है। जिसमें रस्सी के बीचो-बीच काला पुराना ब्लाउज में चावल, दूब, पैसा आदि बांधकर क्रॉस कर ताना जाता है। तना बांधने वाले को नेग मिलता है।
* बच्चे की बुआ चांदी के कटोरे में दिया से काजल तैयार कर लड़के को लगाती है, तदुपरांत वह कटोरा बुआ को नेग के रूप में दे दिया जाता है।
* जलवा पूजने जाते समय सफेद कपड़े पर हल्दी से अर्पण मांड कर जच्चा अपने सिर को ढक कर जाती है।हाथ में चांदी की लुटिया पर सथिया मांड कर उसमे लोहे की चाभी डाली जाती है। दूसरे दिन इसी कपड़े में बच्चे को लपेटकर अन्य पूजा रस्म विधि की जाती है। अंततः ये कपड़ा सुरक्षित संभाल कर रखने की प्रथा है।
* कुएं पर पूजा कराते समय बताशा, मूंग-चावल एवं कब्जे का कपड़ा आदि लगता है। कपड़ा ब्राम्हणी को दे दिया जाता है तथा कुएं पर पूजा की इस्तेमाल सभी सामग्रियों को कुएं में ही विसर्जित कर दिया जाता है।
* पूजा करने के घर लौटने पर किचन या रसोईघर में भरा घड़ा रखकर उस पर सथिया किया जाता है एवं नए ब्लाउज-पीस के कपड़े से ढक कर मूंग-चावल आदि से पूजा की जाती है। फिर इस घड़े का पानी सबसे पहले घर के किसी पुरुष व्यक्ति को पीने के लिए दिया जाता है।
* बाढ़ ढुकाइ : ननद द्वारा भाभी को नेग लेकर फिर आरती उतारकर ही घर मे आने का रस्म निभाया जाता है।
* जलवा पूजने के उपरांत जच्चा द्वारा सभी बड़ी महिलाओं का धोक खाकर नेग में लिफाफा दिया जाता है।
अन्य बहुत से तीज-त्योहार, पारिवारिक रस्म-रिवाज़ भी जल्द ही अपडेट होंगे।
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